संतुष्टि का सुख
जब मन अन्यथा ख्वाहिशों की पूर्ति के दबाव से मुक्त होता है,तो स्वयं ही संतुष्टि और खुशी की भावना ह्रदय में स्थाई होने लगती है,ऐसी स्थिति में खुशी की तलाश में बाहरी संसाधनों का आसरा नहीं खोजना पड़ता है।संतोष के इस अप्रितम तथा अतुलनीय (incredible) धन से अधिक मूल्यवान कोई धन नहीं है।
गुरमीत सिंह
संतोष का धन अतुलनीय है
सुख विलास के सारे साधन एकत्रित कर लिए लेकिन अभी भी खुश नहीं है। लोग अपनी प्रगति से असुन्ष्ट है, गला काट प्रतिस्पर्धा में व्यस्त होकर हर क्षण शतरंज खेल रहे हैं। मोटिवेशनल स्पीकर कह रहे है, रुकना मत संतुष्ट मत होना अन्यथा जीवन की प्रगति में विराम लग जाएगा। ऐसे प्रेरणा पूर्वक कथनों तथा सत्रों से प्रभावित तथा प्रेरित होकर दौड़ और तेज कर दी और एक दिन संतोष और खुशी का अनुभव किए बगैर, अनंत यात्रा पर निकल लिए। मोटिवेशनल स्पीकर अपने जीवन में पूर्ण आनंद उठाते हुए आगामी सत्रों की कार्यशाला में व्यस्त हो गए जो दौड़ में थक कर दुनिया छोड़ गए उनका कोई नामलेवा नहीं बचा। जो लोग अकूत साधनों का सुख | भोग रहे हैं, उनके उद्धहरण निरंतर जारी है।
यही सत्य है जो नहीं बताया जाता सुख संसाधनों के लिए निरंतर प्रयत्न और कर्म भी आवश्यक है, लेकिन अपनी क्षमताओं का आकलन भी उतना ही आवश्यक है। हमारे सामने प्रत्क्षय प्रति दिन उद्धाहरण आते हैं, कि वो सारे यंत्र जिन पर क्षमता से अधिक भार डाला जाता है, वो शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। यंत्र प्रतिरोध नहीं कर सकते, लेकिन हम तो प्रतिरोध कर अनावश्यक भार को कम कर सकते हैं। विडंबना यही है, ख्वाहिशो के मोह ने विवेक को हर लिया है।
अपनी तथा परिवार की आवश्यकताएं पूर्ण करने का दायित्व यदि निर्वाहन हो रहा है तो मन में संतोष की धारणा कर लेना ही टिकाऊ आनंद की और मार्ग प्रशस्त करता है। इस संतोष रूपी अमृत के साथ यदि आपकी क्षमताएं अनुमति देती हैं, तो अपेक्षा रहित होकर अपनी दौड़ की गति बढ़ा सकते है परंतु मन के संतोष तथा शांति के साथ कोई समझौता नहीं होना चाहिए।
जब मन अन्यथा ख्वाहिशों की पूर्ति के दबाव से मुक्त होता है, तो स्वयं ही संतुष्टि और खुशी की भावना हृदय में स्थाई होने लगती है, ऐसी स्थिति में खुशी की तलाश में बाहरी संसाधनों का आसरा नहीं खोजना पड़ता है।
संतोष के इस अप्रितम तथा अतुलनीय (incredible) धन से अधिक मूल्यवान कोई धन नहीं है। मन में संतोष धारित है, तो ध्यान भी अपने आप होने लगता है, जो हमें आत्मिक आनंद के नए सोपान में ले जाता है। परम सत्ता से यदि कोई प्रार्थना करनी है तो यही प्रार्थना करें कि दिव्य शक्ति अपनी ऊर्जा और आशीर्वाद के साथ साथ संतोष का अमृत रूपी धन का अनमोल उपहार प्रदान करे।
मन इस सत्य को स्वयं स्वेच्छा से धारण करे, तभी संतोष का भाव हृदय में बसता है। इस प्रक्रिया को सरल तथा सहज विधि से अपनाने के लिए आई. ओ. आई. सी. के सत्रों में सहभागिता की जा सकती है, जो प्रति माह दो बार निशुल्क आयोजित किए जाते हैं। इन सत्रों में पंजीयन हेतु loic.in वेबसाइट पर पंजीयन किया