महाभारत के 7वें से 18वें अध्याय के नाम ! Name of 7th to 18th chapters in Mahabharata
7.सातवां अध्याय- ज्ञानविज्ञानयोग नाम से है। इसमें विज्ञान सहित ज्ञान का विषय, संपूर्ण पदार्थों में कारण रूप से ईश्वर की व्यापकता का कथन, आसुरी स्वभाव वालों की निंदा और भगवद्भक्तों की प्रशंसा, भगवान के प्रभाव और स्वरूप को न जानने वालों की निंदा और जानने वालों की महिमा का वर्णन किया गया है।
8.आठवां अध्याय- अक्षरब्रह्मयोग नाम से है। इसमें ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और श्रीकृष्ण के द्वारा दिए गए उनके उत्तर है। भक्ति योग का विषय और शुक्ल एवं कृष्ण मार्ग के रहस्य का वर्णन है।
9. नौवां अध्याय- राजविद्याराजगुह्ययोग नाम से है। इसमें प्रभावसहित ज्ञान का विषय है। इसमें जगत का ईश्वर से संबंध और प्रकृति तत्वों की चर्चा है। इसमें जगत की उत्पत्ति का विषय, भगवान का तिरस्कार करने वाले आसुरी प्रकृति वालों की निंदा और दैवी प्रकृति वालों के भगवद्भजन का प्रकार, सर्वात्म रूप से प्रभाव सहित भगवान के स्वरूप का वर्णन, सकाम और निष्काम उपासना का फल और निष्काम भगवद् भक्ति की महिमा का वर्णन है।
10.दसवां अध्याय- विभूतियोग नाम से है। इसमें भगवान की विभूति और योगशक्ति का कथन तथा उनके जानने का फल, फल और प्रभाव सहित भक्तियोग का कथन, अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति तथा विभूति और योगशक्ति को कहने के लिए प्रार्थना, भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का वर्णन है। विभूति अर्थात सिद्धियां और शक्तियां।
11.ग्यारहवां अध्याय- विश्वरूपदर्शनयोग नाम से है। इसमें विश्वरूप के दर्शन हेतु अर्जुन की प्रार्थना, भगवान द्वारा अपने विश्व रूप का वर्णन, संजय द्वारा धृतराष्ट्र के प्रति विश्वरूप का वर्णन, अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना, भगवान द्वारा अपने प्रभाव का वर्णन और अर्जुन को युद्ध के लिए उत्साहित करना, भयभीत हुए अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति और चतुर्भुज रूप का दर्शन कराने के लिए प्रार्थना, भगवान द्वारा अपने विश्वरूप के दर्शन की महिमा का कथन तथा चतुर्भुज और सौम्य रूप का दिखाया जाना, बिना अनन्य भक्ति के चतुर्भुज रूप के दर्शन की दुर्लभता का और फलसहित अनन्य भक्ति का वर्णन है।
12.बारहवां अध्याय- भक्तियोग नाम से है। इसमें साकार और निराकार के उपासकों की उत्तमता का निर्णय और भगवत्प्राप्ति के उपाय का वर्णन है और इसमें भगवत्-प्राप्त पुरुषों के लक्षण बताए गए हैं।
13.तेरहवां अध्याय- क्षेत्र-क्षेत्रज्ञविभागयोग नाम से है। इसमें ज्ञानसहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ के विषय का वर्णन है और ज्ञानसहित प्रकृति-पुरुष के विषय का विषद वर्णन किया गया है। अर्थात स्थिति, ज्ञान, आत्मा, परमात्मा और पंच तत्वों का रहस्यमयी ज्ञान है।
14.चौदहवां अध्याय- गुणत्रयविभागयोग नाम से है। इसमें ज्ञान की महिमा और प्रकृति-पुरुष से जगत् की उत्पत्ति का वर्णन है। सत्, रज, तम- तीनों गुणों का विषय का विषद विवेचन है। इसके अलावा भगवत्प्राप्ति का उपाय और गुणातीत पुरुष के लक्षण बताए गए हैं।
15.पंद्रहवां अध्याय- पुरुषोत्तमयोग नाम से है। इसमें संसार को उल्टे वृक्ष की तरह बताकर भगवत्प्राप्ति के उपाय बताए गए हैं। इसमें जीवात्मा के विषय का विषद विवेचन और प्रभाव सहित परमेश्वर के स्वरूप का वर्णन किया गया है और इसमें क्षर, अक्षर, पुरुषोत्तम के विषय के भी विषद वर्णन है।
16.सोलहवां अध्याय- दैवासुरसम्पद्विभागयोग नाम से है। इसमें फलसहित दैवी और आसुरी व्यक्ति और संपदा का कथन किया गया है। आसुरी संपदा वालों के लक्षण और उनकी अधोगति का विर्णन भी मिलेगा। इसके अलावा शास्त्रविपरीत आचरणों को त्यागने और शास्त्रानुकूल आचरणों के लिए प्रेरणा दी गई है।
17.सत्रहवां अध्याय- श्रद्धात्रयविभागयोग नाम से है। इसमें श्रद्धा का और शास्त्रविपरीत घोर तप करने वालों के विषय का वर्णन है। इसमें आहार, यज्ञ, तप और दान के पृथक-पृथक भेद बताए गए हैं। इसके अलावा ॐ तत्सत् के प्रयोग की व्याख्या की गई है।
18.अठारहवां अध्याय- मोक्षसंन्यासयोग नाम से है। इसमें त्याग का विषद वर्णन, कर्मों के होने में सांख्यसिद्धांत का कथन, तीनों गुणों के अनुसार ज्ञान, कर्म, कर्ता, बुद्धि, धृति और सुख के पृथक-पृथक भेद का वर्णन, फल सहित वर्ण धर्म के विषय का वर्णन, ज्ञाननिष्ठा का वर्णन, भक्ति सहित कर्मयोग का विवेचन और अंत में श्रीगीताजी के माहात्म्य का वर्णन है।