Learn the formula of living and winning from the Pandavas of Mahabharata| |
महाभारत के पांडवों से जिंदगी जीने का गुर या सूत्र। दरअसल, महाभारत हमें बहुत कुछ सिखाती है परंतु हम उससे कुछ सीखना ही नहीं चाहते हैं। महाभारत में सीखने के लिए काफी कुछ है। जिसमें घटित घटनाक्रम को यदि वर्तमान में संदर्भ के रूप में देखें। तो काफी कुछ समस्याओं का समाधान हम स्वयं ही निकाल सकते हैं। महाभारत की हर कहानी कुछ न कुछ सीख देती है। आओ अब सीखें जिंदगी का मैनेजमेंट।
1. पारिवारिक एकता : आपने पांडवों का जीवन तो देखा ही होगा। पांचों पांडवों में एक दूसरे के प्रति प्यार, सम्मान और एकजुटता थी। पांडव जहां जाते थे साथ रहते थे। यही कारण था कि वे 100 कौरवों को पराजित कर सके।
2. सभी के प्रति विनम्रता : पांचों पांडव अपने से बड़ों के प्रति विनम्र थे। वे कभी भी अपने से बढ़े को अपमानीत नहीं करते थे। उनमें घमंड नहीं था और ना ही वे खुद को दूसरों से शक्तिशाली मानकर व्यवहार करते थे। उन्होंने धृतराष्ट्र को अपने पिता समान ही दर्जा दिया और भीष्म पितामह के समक्ष सदा सिर झुकाकर ही बात की। उन्होंने द्रोणाचार्य के प्रति अपनी भक्ति को भी प्रदर्शित किया और श्रीकृष्ण की शरण में रहकर सदा उनकी आज्ञा का पालन किया।
3. विषम परिस्थिति को बनाएं अपने अनुकूल : जब पांडवों को वनवास हुआ तो उन्होंने वनवास की विषम परिस्थिति में भी समय को व्यर्थ नहीं गवांया। इस दौरान उन्होंने जहां अपने लिए राज समर्थन बढाया वहीं उन्होंने तप और ध्यान करके खुद को शक्तिशाली भी बनाया। इसी वनवास में उन्हें वह सबकुछ हासिल हुआ जो महल में रहकर कदापि नहीं हासिल हो सकता था। इसीलिए यह जरूर जानें कि परिस्थिति कैसी भी हो परंतु उसे अपने अनुकूल बनाया जा सकता है।
4. सकारात्मक सोच से लोहा भी बन जाता है सोना : जब कौरवों और पांडवों के बीच राज्य का बंटवारा हुआ तो कौरवों की ओर से धृतराष्ट्र ने पांडवों को विरान पड़ा खांडववन जंगल दे दिया, परंतु पांडवों ने इसे सकारात्मक रूप से लिया और सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखते हुए भगवान कृष्ण की इच्छा से
उन्होंने जंगल में इंद्रप्रस्थ जैसा सुंदर नगर का निर्माण कर दिया।
उन्होंने जंगल में इंद्रप्रस्थ जैसा सुंदर नगर का निर्माण कर दिया।
5. संयमित भाषा का प्रयोग : पांडवों ने जब भी अपने से बढ़े या छोटों से बात की तो संयमित भाषा का का ही प्रयोग किया। उन्होंने अपनी ओर से कभी किसी को कटु वचन नहीं कहे, बल्कि जब भी उन्हें कौरवों की ओर से कटु वचन सुनने को मिले तो उसका जवाब भी उन्होंने संयमित रहकर ही दिया। उन्होंने कभी भी कौरवों की भाषा को उपयोग नहीं किया।
6. धैर्य और साहस का प्रयोग : पांडवों ने विषम परिस्थिति में भी हमेशा धैर्य के साथ काम लिया और साहस के साथ उसका मुकाबला किया। चाहे वह लक्ष्यागृह से बचना हो या युद्ध में कौरवों के द्वारा उनकी सेना के हजारों सैनिकों का एक ही दिन में सफाया करना करना हो। कौरवों के समक्ष कमजोर होने के बावजूद उन्होंने धैर्य और साहस से युद्ध को जीता।
7. गलतियों से सीखा : पांडवों ने अपनी गलतियों से सीखा और उस सीख को कभी भुले नहीं। उन्होंने कभी भी गलतियों को दोहराया नहीं और हमेशा नए प्रयोग की किए।
8. मन में नहीं रखा कभी भ्रम : यदि आपके मन में भ्रम या विरोधाभाष होगा तो आपमें निर्णय लेने की क्षमता का पतन हो जाएगा। पांडवों के मन में कभी भी किसी भी बात को लेकर भ्रम नहीं रहा। जब युद्ध प्रारंभ हुआ तो युधिष्ठिर ने रथ से उतरकर यह कहा कि यह धर्मयुद्ध है। इस युद्ध में एक और धर्म है तो दूसरी और अधर्म है। निश्चित ही किसी एक ओर धर्म है। जिन्हें यह लगता है कि हमारी ओर धर्म है उनके लिए अभी भी अवसर है कि वे हमारी ओर आ जाएं और मेरी सेना में जिन्हें लगता है कि कौरवों की ओर धर्म निवास करता है वे कौरवों की ओर चले जाएं क्योंकि हम चाहते हैं कि युद्ध में अपना पक्ष स्पष्ट हो, जिससे किसी भी प्रकार का भ्रम ना रहे।
9. सदा सत्य के साथ रहो : कौरवों की सेना पांडवों की सेना से कहीं ज्यादा शक्तिशाली थी। एक से एक योद्धा और ज्ञानीजन कौरवों का साथ दे रहे थे। पांडवों की सेना में ऐसे वीर योद्धा नहीं थे। कहते हैं कि विजय उसकी नहीं होती जहां लोग ज्यादा हैं, ज्यादा धनवान हैं या बड़े पदाधिकारी हैं। विजय हमेशा उसकी होती है, जहां ईश्वर है और ईश्वर हमेशा वहीं है, जहां सत्य है इसलिए सत्य का साथ कभी न छोड़ें। अंतत: सत्य की ही जीत होती है। सत्य के लिए जो करना पड़े करो। पांडव हमेशा सत्य के साथ ही रहे थे।
10. अच्छे दोस्तों की कद्र करो : ईमानदार और बिना शर्त समर्थन देने वाले दोस्त भी आपका जीवन बदल सकते हैं। पांडवों के पास भगवान श्रीकृष्ण थे तो कौरवों के पास महान योद्धा कर्ण थे। इन दोनों ने ही दोनों पक्षों को बिना शर्त अपना पूरा साथ और सहयोग दिया था। यदि कर्ण को छल से नहीं मारा जाता तो कौरवों की जीत तय थी। पांडवों ने हमेशा श्रीकृष्ण की बातों को ध्यान से सुना और उस पर अमल भी किया लेकिन दुर्योधन ने कर्ण को सिर्फ एक योद्धा समझकर उसका पांडवों की सेना के खिलाफ इस्तेमाल किया। यदि दुर्योधन कर्ण की बात मानकर कर्ण को घटोत्कच को मारने के लिए दबाव नहीं डालता, तो इंद्र द्वारा दिया गया जो अमोघ अस्त्र कर्ण के पास था उससे अर्जुन मारा जाता।