facts about Christmas |
क्रिसमस से अनेकों तथ्य है लेकिन सबसे महत्वपूर्ण तथ्य ईसाई धर्म में क्रिसमस को सबसे बड़ा पर्व माना जाता है। परंपरा से ईसा मसीह का जन्म समय 25 दिसंबर सन् 6 ईसा पूर्व माना जाता है। इसीलिए हर वर्ष 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाया जाता है। क्रिसमस से जुड़े कई रस्मों रिवाज भी हैं, जो दुनियाभर में सदियों से मनाए जाते हैं आओ जानते हैं क्रिसमस से जुड़े ऐसे ही 1 0 खास रिवाजों के बारे में।
1. गोशाला : क्रिसमस के दिन चर्च में ईसा के जन्म की झांकी बनाई जाती है जिसमें गौशाला बनाकर उसमें बालक येशु को मदर मैरी के साथ दर्शाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि ईसा मसीह का जन्म बेथलहेम की एक गौशाला में हुआ था। हालांकि कुछ लोगों का मानना था कि वो घोड़ो या भेड़ का अस्तबल था और कुछ मानते हैं कि वो एक गुफा थी।
2. क्रिसमस ट्री : क्रिसमस पर क्रिसमय ट्री बानाने का भी बहुत महत्व है। एक जर्मन किंवदंती भी प्रचलित है कि यीशु का जन्म हुआ तो वहां चर रहे पशुओं ने उन्हें प्रणाम किया और देखते ही देखते जंगल के सारे वृक्ष सदाबहार हरी पत्तियों से लद गए। बस, तभी से क्रिसमस ट्री को ईसाई धर्म का परंपरागत प्रतीक माना जाने लगा। सदाबहार क्रिसमस वृक्ष डगलस, बालसम या फर का पौधा होता है जिस पर क्रिसमस के दिन बहुत सजावट की जाती है। इसे देवदार का वृक्ष भी बाना जाता है। जो भी हो इस ट्री को बिजली की लड़ियों से सजाकर सुंदर सा बनाया जाता है। यह भी कहा जाता है कि प्रचलित मान्यता अनुसार एक बार संत बोनिफेस जर्मनी में यात्राएं करते हुए वे एक ओक वृक्ष के नीचे विश्राम कर रहे थे, जहां गैर ईसाई अपने देवताओं की संतुष्टि के लिए लोगों की बलि देते थे। संत बोनिफेस ने वह वृक्ष काट डाला और उसके स्थान पर फर का वृक्ष लगाया। तभी से अपने धार्मिक संदेशों के लिए संत बोनिफेस फर के प्रतीक का प्रयोग करने लगे थे। रशिया (रूस) के लोग 7 जनवरी को क्रिसमय मनाते हैं। इस दौरान वे देवदार के लंबे-लंबे वृक्षों को सजाते हैं। आधुनिक युग में क्रिसमस ट्री की शुरुआत पश्चिम जर्मनी में हुई। मध्यकाल में एक लोकप्रिय नाटक के मंचन के दौरान ईडन गार्डन को दिखाने के लिए फर के पौधों का प्रयोग किया गया जिस पर सेब लटकाए गए। इस पेड़ को स्वर्ग वृक्ष का प्रतीक दिखाया गया था। ज्यादातर लोग इस मौके पर ऐसे पेड़ खरीदते हैं जो सदाबहार हों और ऐसे पेड़ों को ही क्रिसमस ट्री में बदला जाता है।
- यीशु का जन्म
- 3. सैंटा क्लॉज : मान्यता अनुसार सैंटा क्रिसमस के दिन सीधा स्वर्ग से धरती पर आते हैं और वे बच्चों के लिए टॉफियां, चॉकलेट, फल, खिलौने व अन्य उपहार बांटकर वापस स्वर्ग में चले जाते हैं। कई लोग सैंटा क्लॉज को एक कल्पित पात्र मानते हैं और कई लोगों का मानना है कि सैंटा क्लॉज चौथी शताब्दी में मायरा के निकट एक शहर में जन्मे थे। उनका नाम निकोलस था। चूंकि कैथोलिक चर्च ने उन्हें 'संत' का ओहदा दिया था, इसलिए उन्हें 'सैंटा क्लॉज' कहा जाने लगा। जो आज 'सैंटा क्लॉज' के नाम से मशहूर है। संत निकोलस की याद में कुछ जगहों पर हर साल 6 दिसंबर को 'संत निकोलस दिवस' भी मनाया जाता है। कई पश्चिमी ईसाई देशों में यह मान्यता है कि सांता क्रिसमस की पूर्व संध्या, यानि 24 दिसम्बर की शाम या देर रात के समय के दौरान अच्छे बच्चों के घरों में आकर उन्हें उपहार देता है। सान्ता क्लोज खासतौर से क्रिसमस पर बच्चों को खिलौने और तोहफे बांटने ही वे उत्तरी ध्रुव पर आते हैं बाकि का समय वे लेप लैन्ड, फीनलैन्ड में रहते हैं। परंपरा से अब सिर्फ सांता ही उपहार नहीं देते हैं बल्कि क्रिसमय पर लोग एक दूसरे को उपहार देते हैं।
- ईसा मसीह जब मृत्यु के बाद जीवित हो गए तो फिर वे कहां चले गए ?
- ईसा मसीह कौन सी भाषा बोलते थे?
- क्रिसमस!, ब्राउनी केक के बिना अधूरा है।