Who was the wife of Jesus Christ? |
ईसा मसीह (यीशु) की पत्नी एक रहस्य ही बना है लेकिन कुछ पुस्तकों एवं विद्वानों के उल्लेख पर यह निष्कर्ष निकाला गया
इन महिलाओं को अपनी पूरी जिंदगी ऐसे बितानी होती है जैसे वो आम समाज का हिस्सा होते हुए भी भगवान से जुड़ी हुई हों
इन महिलाओं को अपना पूरा जीवन ईश्वर की दया और तपस्या के आधार पर जीना होता है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि ये अपना जीवन आम तरह से नहीं जी सकतीं. इनमें और नन में सबसे अहम अंतर ये होता है कि ये महिलाएं अपना जीवन जीने के लिए समाज से अलग नहीं होतीं. अपने परिवार को नहीं छोड़तीं. अपना काम नहीं छोड़तीं.
कब से शुरू हुई ये प्रथा..
वैसे तो देवकन्याओं की प्रथा अलग-अलग समाज में मौजूद है. कहीं ये देवदासी के नाम से जानी जाती हैं, कहीं देवकन्या या कहीं कुछ और, ईसाई धर्म में कॉन्सिक्रेटेड वर्जिन्स. ये सदियों से चला आ रहा नियम है, लेकिन इसे आधूनिक बनाया गया 1970 में जब पोप पॉल VI के नेतृत्व में इसमें बदलाव किए गए थे. अगर इसकी शुरुआत की बात की जाए तो ईसाई धर्म बाइबलमें ये Apostolic एरा (यानी ईसा मसीह के 12 घनिष्ट अनुयाइयों का काल) से चली आ रही है. चूंकि ये प्रथा इतनी पुरानी है इसलिए रूढ़ीवादी समाज में शुरुआती दौर की कई महिलाओं को इसके कारण अपनी जान भी गंवानी पड़ी थी. क्योंकि उन्होंने प्रतिष्ठिक व्यक्तियों से शादी के लिए मना कर दिया था.
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1983 का कोड ऑफ कैनन लॉ और 1996 का एपोस्टोलिक एक्हॉर्टेशन विटा (Apostolic Exhortation Vita Consecrata) जिसमें जॉन पॉल II ने इन महिलाओं को ऑर्डर ऑफ वर्जिन कहा था. इनकी छवि बदलने का प्रयास किया था और इन्हें हेवेनली ब्राइड यानी स्वर्ग की पत्नियां कहा गया था.
ऑर्डर ऑफ वर्जिन के स्टेटस में समय के साथ बदलाव आते रहे हैं और इसमें अन्य नियम भी जुड़ते रहे. एक समय जहां ये महिलाएं खुद को सिर्फ बिशप तक ही सीमित रखती थीं क्योंकि बिशप को देवदूत माना जाता था अब ये महिलाएं अपनी जिंदगी आम तरह से जी सकती हैं. नौकरी कर सकती हैं और अपने दैनिक काम करने के बाद घर आकर ईश्वर की प्राथर्ना में लग जाती हैं.
सबसे चर्चित वर्जिन्स-
वैसे तो ये कुवांरी पत्नियां सदियों से ईसाई समाज का हिस्सा रही हैं, लेकिन इनमें से कुछ बेहद चर्चित रही हैं. ईसा मसीह के मरने के बाद 300 सालों तक ऐसे कई महिलाएं रही हैं जो वर्जिन शहीद की उपाधि पा चुकी हैं क्योंकि उन्हें ईसा की पत्नी कहलाने के लिए ही मार दिया गया था और कइयों को इसलिए मारा गया था क्योंकि वो प्रतिष्ठित लोगों से शादी के लिए तैयार नहीं थीं
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इनमें से एक थी एग्निस ऑफ रोम. उन्होंने शहर के गवर्नर से शादी के लिए मना कर दिया गया था और अपनी धार्मिक मान्यताओं के कारण उन्हें मार दिया गया था. कई कत्ल होने के बाद इस प्रथा को काफी समय के लिए रोक दिया गया था, पर 1971 में Ordo consecrationis virginum डॉक्युमेंट के साथ वैटिकन ने इन महिलाओं को उनकी उपाधि दे दी थी.
कैसे बनाई जाती हैं कुवांरी पत्नियां-
बिशप (वही जिसे ये अनुष्ठान करने का अधिकार होता है.) वो महिला को कॉन्सेक्रेट करता है. ये Consecratio Virginum (Consecration of Virgins) के आधार पर होता है. ये महिलाएं ऐसी ही ईसा मसीह की पत्नियां नहीं बन जातीं. इन्हें लंबा इंतजार करना पड़ता है. पहले अर्जी देनी होती है और कई बार ये पूरा होने में दो साल भी लग जाते हैं. फिर जिस दिन उनकी शादी होती है (ईसा मसीह से शादी) उस दिन उन्हें घंटो अनुष्ठान करना होता है.
वो पूरी तरह दुल्हनों की तरह सजकर आती हैं और उन्हें एक वेडिंग रिंग, वेल (घूंघट जो ईसाई शादी में पहना जाता है.) वेडिंग ड्रेस सब कुछ लेकर आना होता है. उन्हें ये कसम खानी होती है कि वो किसी भी तरह के रोमांटिक या सेक्शुअल रिश्ते में नहीं जाएंगी.
कितनी पत्नियां हैं ईसा मसीह की?
दुनियाभर में करीब 4 से 5 हज़ार लड़कियों ने ईसा मसीह को अपना पति माना है. दरअसल, ये आंकड़ा पूरा नहीं कहा जा सकता क्योंकि कोई खास संस्था इसका रिकॉर्ड नहीं रखती, लेकिन कुछ सर्वे और diocesan रिकॉर्ड कहते हैं कि 2018 तक करीब 5000 महिलाएं ईसा मसीह की पत्नी के तौर पर रह रही हैं. 2015 में हुए एक सर्वे के मुताबिक ये आंकड़ा 4000 है. ये अलग-अलग देशों में हैं. यूनाइटेड स्टेट्स में इसकी असोसिएशन है जिसे nited States Association of Consecrated Virgins (SACV) कहा जाता है उसके अनुसार 254 ब्राइड्स ऑफ क्राइस्ट ("brides of Christ") अमेरिका में हैं.
brides of Christ |
दुनिया भर में हजारों ऐसी महिलाएं हैं जो ईसा मसीह को अपना पति मान चुकी हैं
एक सर्वे के मुताबिक करीब 78 देशों में ईसा मसीह की पत्नियां रह रही हैं. अकेले फ्रांस और इटली में 1220 महिलाएं हैं जिन्हें consecrated virgins का खिताब मिला हुआ है. अमेरिका, मेक्सिको, रोमानिया, पोलैंड, स्पेन, जर्मनी और अर्जेन्टीना में भी बहुत सी ऐसी महिलाएं हैं.
हाल ही में हुआ है एक और बदलाव-
पिछले साल जुलाई में एक नई गाइडलाइन सामने आई थी. वैटिकन की तरफ से आई इस गाइडलाइन में इस मुद्दे पर बात की गई थी कि क्या इन महिलाओं को अनुष्ठान होने तक वर्जिन रहना है या फिर आजीवन वर्जिन रहना है. नन को अविवाहित जीवन और पवित्रता की कसम तब खानी होती है जब वो धार्मिक अनुष्ठान कर रही हो और नन बनने जा रही हो, लेकिन ब्राइड्स ऑफ क्राइस्ट के साथ ऐसा नहीं है. पुराने नियम के अनुसार उन्हें आजीवन वर्जिन रहना होता था. इस बात पर बहुत विवाद हुआ और नए नियम ने इसे कुछ हद तक बदल दिया.यीशु को जब सूली पर चढ़ाया गया तो उन्हें दर्द क्यों नहीं हुआ जानिए? Why did Jesus not feel the pain when he was crucified?
जिस डॉक्युमेंट की यहां बात हो रही है उसके सेक्शन 88 के अनुसार वैटिकन यह कहता है कि अपने शरीर को पूरी तरह आत्मसंयमित रखना या पवित्रता के मूल्यों का अनुकरणीय ढंग से पालन करना महत्वपूर्ण है, लेकिन यह 'कॉन्सीक्रेटेड वर्जिन' बनने की अनिवार्य और पहले से आवश्यक शर्त नहीं है.
कई जगह इसका विरोध हुआ क्योंकि लोग मानते हैं कि मसीह की बीवी होने का दर्जा पाने के लिए आध्यात्मिक और शारीरिक तौर पर पवित्र होना बेहद जरूरी है.यीशु का जन्म
भारत में देवदासी प्रथा-
भारत में खास तौर पर दक्षिण में भी ये प्रथा था कि लड़कियों को बचपन में ही देवताओं की शरण में भेज दिया जाता था. इन्हें देवदासी यानी भगवान की नौकर के रूप में देखा जाता था. इनके लिए जोगिनी शब्द का भी प्रयोग होता था. ये बेहद कम उम्र की लड़कियां होती थीं जो अपनी जिंदगी भगवान को समर्पित करने को मजबूर हो जाती थीं. ये 7 साल की उम्र से देवदासी बन सकती थीं इसलिए कई लड़कियां इस उम्र से ही मंदिर में दान दे दी जात
इन्हें पोटूकट्टू नाम की एक प्रथा के साथ मंदिर में दिया जाता था जो हिंदू शादी की तरह ही होती थी. कई मामलों में देवदासी को पारंपरिक रीतियां निभानी होती थीं जैसे कि एक हिंदू पत्नी को निभानी होती है. मंदिर में अनुष्ठान करने के साथ-साथ ये महिलाएं पारंपरिक कला जैसे नृत्य, गाना आदि सीखती थीं और मंदिर का ध्यान भी रखती थीं. उन्हें कला में महारत हासिल होती थी.
देवदासी बनने के बाद ये महिलाएं अपना पूरा जीवन इसी में बिताती थीं और उन्हें कई बार मंदिर के पुजारियों और बड़ी उपाधि वालों के साथ संबंध बनाने पड़ते थे और उन्हें बच्चे भी होते थे. ये ईसाई धर्म की प्रथा से अलग है क्योंकि वहां महिलाओं को आजीवन वर्जिन रहना होता है, लेकिन भारतीय देवदासियों को मां भी बनना पड़ता था. समय के साथ ये प्रथा खत्म हो गई क्योंकि महिलाओं का शोषण होने लगा था. भारत रत्न एम एस सुभालक्ष्मी और पद्म विभूषण बालासरस्वती भी देवदासी समुदाय से हैं.बाइबल